विषय करन सुर जीव समेता,
सकल एक तें एक सचेता ।
सब कर परम प्रकाशक जोई, राम अनादि अवधपति सोई।
तन नव द्वार हो रामा, अति ही मलिन हो ठामा।
त्यागि चढू दशम द्वारे, सुख पाउ रे भाई।
मंगल मूरति सदगुरु, मिलवैं सर्वाधार।
मंगलमय मंगल करण, विनवै बारम्बार।
निज घर में निज प्रभु को पावै, अति हुलसावै ना।
मेंहीं अस गुरु संत उक्ति, यम त्रास मिटावै ना।
गुरु बिन और न जान मान मेरो कहो।
चरनदास उपदेश विचारात ही रहो।
कल्पवृक्ष गुरुदेव मनोरथ सब सरैं ।
कामधेनु गुरुदेव छुधा तृष्णा हरैं।
गुरु ही शेष महेश तोहि चेतन करैं ।
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु होय खाली भरैं।
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