Monday, 10 December 2018

अलौकिक जागरण पत्रिका



किसान चाहे कितनी भी खेती करें, खाद डाले, बीज बोए, पानी देवे, परंतु जब तक सूर्य का प्रकाश  नहीं मिलता, तब तक सब व्यर्थ हैं, ऐसे ही मनुष्य चाहे जितना भी जप तप करें, यम नियमों का पालन करें, परंतु जब तक सदगुरु रूपी सूर्य का आत्मा, प्रकाश नहीं मिलता, तब तक सब व्यर्थ हैं ......
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स्वामी रामतीर्थ

पहर पछिले नाहिं जागों, कियो ना शुभ कर्म।
आन मारग जाय लागों, लियो ना गुरुधर्म।

देह घर हैं मौत का रे, आन काढ़ें तेहि।
एक छिन नहिं रहन पावै, कहा केसों होय ।

रैन दिन आराम ना कर, काटै जो तेरी आव।
चरणदास कहै सुन सहजिया, करो भजन उपाव।

आत्मा का आत्मा में रमण करना तथा समस्त दोषों का छूट जाना ही धर्म हैं। यहीं संसार से पार उतरने का हेतु ।भगवान ने ऐसा कहा हैं।

सब प्राणियों, भूतों, जीवों, और सत्वों का हनन मत करो।उन पर शासन मत करो।

किसी भी प्राणी का वध अपनी आत्मा का ही वध हैं।
किसी भी प्राणी की दया अपनी आत्मा का ही दया हैं।
इसलिये हिंसा का विष और कंटक के समान परिहार करना चाहिये।

संत हमारे प्राण रहौं मैं साथ में,
तीन लोक सब रहे संत के हाथ में।

वहाँ के भेद कबीर गुरु जाने ।
आवत जात हमेश हो ।

कृपा कृपा सब कोई कहैं, कृपा पात्र कोय।
कृपा पात्र सोई जानिये, जो आज्ञाकारी होय।

बैल बने हल में जूते, ले गाड़ी में दिन।
तेली के कोल्हू रहे, पुनि घेर कसाई लीन।

मांस कटा बोटी बिकी, चमडन मढ़ी नक्कार।
कुछ कुकरम बाकी रहे, तिस पर पड़ती मार।




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