कहते हैं वह माता धन्य होती हैं जिनके घर संत पुत्र जन्म लेते हैं वह पिता धन्य हैं जिनके अंश सांसार को ज्योति प्रदान करते हैं :
कुछ ऐसा ही हुआ सन 1967 को बिहार प्रान्त के भागलपुर जिले के आलियाबाढ़ में एक ब्राह्मण के घर ।
आपके पिता श्री श्री दशरथ झा तथा माता सावित्री देवी हैं !
आप पांचों संतानों में तीसरे संतान हैं!
श्रेष्ठ कुल में जन्म लेने से आप बचपन से ही सांस्कारी थे!
तथा 12 वर्ष की अवस्था में आप ने महर्षि मेंही जी से मिले फिर आप संत तथा आश्रम की सेवा में लग गये, तथा 15 वर्ष की अवस्था में सदगुरु महाराज से दीक्षित हुए !
1989 में संत सेवी महाराज द्वारा आपको सम्पूर्ण त्याग की दीक्षा प्राप्त हुयी उसके बाद आपने कठोर साधना करते हुये,
संतमत का प्रचार प्रसार करना शुरू कर दिया।
आप तन मन धन से संतमत की सेवा तथा प्रचार पर जोड़ देना नहीं भुला, आपकी कठोर तपस्या से आज संतमत विश्व विख्यात हैं ,
सभी गुरुओं को सर पर रख के आपने वह कर दिखाया जिस पर पूरे समाज को गर्व होता हैं ।
कई काव्य की रचना आपसे हुई, अपने गुरु के बखान में आपने कई पुस्तक लिख डाली, आपके लिखे पुस्तक से ज्ञान का अनमोल सागर परिदृश्य में बहता हैं ,
आपने हरिद्वार, देहरादून, जम्मू, मौरमंडी पंजाब, कर्नाटक बंगलुरु, मैसूर, आदि स्थानों पर संतमत मंदिर बना कर संतमत के प्रचार को पूरे भारत वर्ष में फैलाया हैं ।
देश विदेश से आपके शिष्य आते हैं आपसे दीक्षा लेने ।
आपके पावन कर्म की कहानी अमर, आपके रोशन से रोशनमय आश्रम हैं, आपकी भक्ति पूर्ण रूप से सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज को समर्पित,
आप संत कहे जाते , आज आपके कई अनुयायी हैं ।
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