✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍✍
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
जय मेंहीं भवदुख हरण, करनबोध उजियार।
सुखनिधान कल्याणमय, नमस्कार बहुबार।।
ज्ञानहीन निज मानिकै, धरौं शीश पदकंज ।
करुणाकर हे संतवर, दयावन्त सुख पुंज।।
जय मेंहीं भव सिंधु सुखायक।
काम कोह मद मोह नशायक।
देवी नंदन त्रास विभंजन।
त्रिविध ताप अरु पाप निकंदन।।
कीरति अमित जगत महँ छायों।
चरित पुनीत सूजन मन भायों।।
बबुजन लाल दास पितु निका।
कुल कायस्थ सुनिर्मल जी का।।
जनकवती तुअ मातु कहाये।
मझुआ टोला जन्म सुहाये।।
शुभ्रगात अनुपम गुणराशी।
ज्ञानसिंधु अंतर मल नाशी।।
ब्रह्मदुत सुंदर सुखधामा ।
परामधीर मेंहीं शुभनामा।।
बालचरित कीन्हों कछु काला।
लीन्हों तपसी वेष विशाला।।
सदा विराग राग नहिं श्रुति के मग सों।
विगल होइ नहिं श्रुति के मग सो।।
कीन्हों भ्रमण जगत हित लागी।
दीन्हों ज्ञान परम वीरहागी।।
प्रथमें दरिया पंथ पधारे।
गुरु भे रामानंद अचारे।।
दूजों महँ संतनमत भायों।
सदगुरु देवी दास कहायों।।
गुहा ग्राम महँ लिये बनाये।
प्रविशी ताहि महँ ध्यान लगाये।।
अरु केते थल साधन कीन्हा।
अंत गंगतट कंदर चीन्हा।।
इहाँ बैठी तप कीन्हा अपारा ।
ब्रह्म ज्योति निज घट में बारा।।
अनुपम अचरज ज्योत लखायों।
सूरत अमृतनाद चखायों।।
अनहद शब्द कियों झाँकारा।
रोम रोम धुन रारंगकारा।।
एक ॐ धुन सुर्त समायो।
परमातम लखि जगत भुलायों।।
अविचल पद महँ लीन्ह बसेरा।
देह गेह सों भये निवेरा ।।
निर्मल नाम जगत महँ छायों।
सकल देव मिली गुण गन गायों।।
उभय प्रबोध सुधामय बचना।
कीन्हों अमित ग्रंथ की रचना।।
कीन्हों चरित सूजन मन हारी।
दीन्हे भक्तन भक्ति पियारी।।
केते जन निज रूप लखायों।
अरु केते घट सुधा चखायों।।
केते दीन्ह भक्ति कै दाना।
हरि लीन्हों केते अभिमान।।
जाई विदेश दरस दै आये ।
सत्याचरण सूजन मन भाये।।
यति कै वेष देह पर सोहैं ।
लखत रूप सज्जन मन मोहैं।।
रघुपति महिमा सुनें सदाई।
संत वचन सों प्रीति महाई।।
देवें जन उपदेश निरंतर।
कृपा दृष्टि हर मल अभिअंतर ।।
कीन्हों जग उपकार घनेरे ।
ज्ञान हानि उर भयों उजेरे।।
केते अधम मंदमति कामी।
तारे तिन्ह कह अंतर्यामी।।
झूट कपट मत्सर मद गेहा।
उद्धारे प्रभु सहित स्नेहा।।
जे जन सुनें सुकीरत नीता।
ते नाहिं होय काल भयभीता।।
जे कर सहज ध्यान नित नेमा ।
तिन्ह कर होइ सदा शुभ क्षेमा।।
संकट कटे जपे शुभनामा।
मेंहीवर सुंदर सुखधाम।।
जो जन कर तू याद सदाई।
तिनके सकल पाप जल जाई।।
पाले जो इन्ह के उपदेशा।
तिनके मिटे जन्म कृत कलेशा।।
जय जय जय अमरपुरवाशी।
करो कृपा संतन्ह सुखराशि।।
भव बंधन सों दास छुड़ावहु ।
वंदी छोड़ विरद संभारहु।
होइ मनोरथ सिद्ध सदाई।
जे मेंहीं चालीसा गाई।
पढ़े नारी नर अति मन लाई।
व्यास होइ जगदीश सहाई।।
दोहा
जय मेंहीं भवरुज दलन, करुणाकर सुखमूल।
विमल ज्ञान वैराग निधि, हरें त्रिविध भवशूल।।
पतित उधारन देव तू, देवें नित सतज्ञान।
षट रिपु नाश करन हरि, पावें जन मन त्राण।।
Hi
ReplyDeleteश्री सतगुरु महाराज की जय l
ReplyDeleteJay guru maharaj
DeleteJai guru Dev
Deleteश्री सदगुरु महाराज की जय... कृपया इससे आगे भी अपलोड करने की कृपा करें।
ReplyDeleteYesko or aage v aplod kare
DeleteWow beautiful
ReplyDeleteShri sadguru Maharaj ki Jay. mahrshi menhi chalisa. isase aage bhi likhane ki kripa Karen. sampurn mahrshi mein hi chalisa
ReplyDelete