Sunday, 2 December 2018

सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज भजन

1. अंतर के अंतिम तह में गुरु हैं, मन पता पाता नहीं।
नैनों के तिल में ज्योति उनकी, नज़र में आता नहीं।।
अंग संग हर वक़्त रहता, प्रगट हो आता नहीं।
हो रहे हैरान सागिल, जल्द दिखलाता नहीं।
खोजते फिरते बहुत से इस जगत में जा ब जा ।
अंतर के अंतिम तह के रह बिन कोई उसे पाता नहीं।
बिन दया सांतन्ह की मेंहीं, जानना इस राह को।
हुआ नही होता नही वो होनहार हैं नहीं।

2. खोज करो अंतर उजियारी, दृष्टिवान कोई देखा हैं
  गुरु भेदी का चरण भेद कर भक्त भेद पा लेता हैं।
निशिदिन सूरत आधार पर कर कर अंधकार फट जाता हैं।
पीली नीली लाल सफेदी, स्याही सन्मुख आता हैं ।
छट छट छट छट बिजली छटके, भोर का तारा दिखता हैं।
चंदा उगत उदय हो रविहु, धुर शब्द मिल जाता हैं ।
गुरु सदगुरु के चरण अधिनन , अगम भेद यह पाता हैं।
विविध भांति के कर्म जगत में, जीवन घेरी फ़साता हैं।
बाबा देवी कहैं कह मेंहीं सदगुरु गुरु ही बचाता हैं।।

3. गुरु हरि चरण में प्रीति हो, युग काल क्या करें।
कछुवी की दृष्टि दृष्टि हो, जंजाल क्या करें।
जग नाश का विश्वाश हो, फिर आश क्या करें।
दृढ़ भजन धन ही खास हो, फिर त्रास क्या करें।
सत्संग गढ़ में वास हो, भव पाश क्या करें।
सत बरत में दृढ़ आप हो, कोई शाप क्या करें।
पूरे गुरु का संग हो, अनंग क्या करे।
मेंहीं जो अनुभव ज्ञान हो, अनुमान क्या करें।

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