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1 . रे हंसा प्राण पवन एक संगा।
पांच तत्त तन साज बनो हैं , पिरथी जल पवन उतंगा।
अगिनि आकाश मास भयो भीतर, रची कीन्हा असअंगा।।
जब लग पवन बहे काया में, तब लग चेतन चंगा।
निकसी पवन भवन भयो सूना, उड़त भवर तन भंगा।
तन करि नास भास चलि जैहै, जब कोई साथ ना संगा।
जम के दूत पूत ले जावै, नहिं कोई आस असंगा।
यह माया त्रिभुवन पटरानी, भक्छत जीव पतंगा।
तुलसी पवर पार को रोके, मन मत मौज तरंगा।।
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2. हमारा मालिक सबके माहिं।
सब में हैं और सब तें न्यारा ऐसा अदभुत साई।
जो गुरु मिले तो भेद बतावे, बिन गुरु दरस ना पाई।
सब तें बड़ा छोट सबहि तें, घट घट रहा समाई।
जा घट में परघट होय दरसे, ताके बलि बलि जाहिं।
रूप रंग आकार न वाके , वेद नेति करि गाई ।
देवी कस कस वाहि बखाने, कहन सुनन में नाहिं।
1 . रे हंसा प्राण पवन एक संगा।
पांच तत्त तन साज बनो हैं , पिरथी जल पवन उतंगा।
अगिनि आकाश मास भयो भीतर, रची कीन्हा असअंगा।।
जब लग पवन बहे काया में, तब लग चेतन चंगा।
निकसी पवन भवन भयो सूना, उड़त भवर तन भंगा।
तन करि नास भास चलि जैहै, जब कोई साथ ना संगा।
जम के दूत पूत ले जावै, नहिं कोई आस असंगा।
यह माया त्रिभुवन पटरानी, भक्छत जीव पतंगा।
तुलसी पवर पार को रोके, मन मत मौज तरंगा।।
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2. हमारा मालिक सबके माहिं।
सब में हैं और सब तें न्यारा ऐसा अदभुत साई।
जो गुरु मिले तो भेद बतावे, बिन गुरु दरस ना पाई।
सब तें बड़ा छोट सबहि तें, घट घट रहा समाई।
जा घट में परघट होय दरसे, ताके बलि बलि जाहिं।
रूप रंग आकार न वाके , वेद नेति करि गाई ।
देवी कस कस वाहि बखाने, कहन सुनन में नाहिं।
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