🌹🌹✍प्रातः कालीन स्तुति✍🌹🌹
सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर,
औरु अक्षर पार में ।
निर्गुण सगुण के पार में
सत असत हूं के पार में ।
सब नाम रूप के पार में
मन बुद्धि वच के पार में ।
गो गुण विषय पंच पार में
गति भांति के हूं पार में ।
सूरत निरत के पार में
सब द्वंद द्वैतन्ह पार में ।
आहत अनाहत पार में
सारे प्रपंचन्ह पार में ।
सापेक्षता के पार में
त्रिपुटी कुटी के पार में ।
सब कर्म काल के पार में
सारे जंजालन्ह पार में ।
अद्वय अनामय अमल अति
आधेयता गुण पार में।
सत्ता स्वरूप अपार सर्वाधार,
मैं तू पार में ।
पुनि ॐ सोहम पार में,
अरु सचिदानंद पार में ।
हैं अनंत व्यापक पार में
हैं हिरण्य गर्भहु खर्व जासों,
जो हैं सांतन्ह पार में।
सर्वेश हैं अखिलेश हैं,
विश्वेश हैं सब पार में।
सतशब्द धरकर चल मिलन,
आवरण सारे पार में ।
सद्गुरु करुण कर तर ठहर,
धर मेंही जावे पार में ।
✍✍✍✍✍✍✍✍
सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर,
औरु अक्षर पार में ।
निर्गुण सगुण के पार में
सत असत हूं के पार में ।
सब नाम रूप के पार में
मन बुद्धि वच के पार में ।
गो गुण विषय पंच पार में
गति भांति के हूं पार में ।
सूरत निरत के पार में
सब द्वंद द्वैतन्ह पार में ।
आहत अनाहत पार में
सारे प्रपंचन्ह पार में ।
सापेक्षता के पार में
त्रिपुटी कुटी के पार में ।
सब कर्म काल के पार में
सारे जंजालन्ह पार में ।
अद्वय अनामय अमल अति
आधेयता गुण पार में।
सत्ता स्वरूप अपार सर्वाधार,
मैं तू पार में ।
पुनि ॐ सोहम पार में,
अरु सचिदानंद पार में ।
हैं अनंत व्यापक पार में
हैं हिरण्य गर्भहु खर्व जासों,
जो हैं सांतन्ह पार में।
सर्वेश हैं अखिलेश हैं,
विश्वेश हैं सब पार में।
सतशब्द धरकर चल मिलन,
आवरण सारे पार में ।
सद्गुरु करुण कर तर ठहर,
धर मेंही जावे पार में ।
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