Monday, 3 December 2018

संतमत सिद्धान्त

🌹🌹✍संतमत सिद्धान्त ✍🌹🌹
शांति स्थिरता वा निश्चलता को कहते हैं,
शांति को जो प्राप्त कर लेते हैं संत कहलाते हैं,
संतों के मत वा धर्म को संतमत कहते हैं।
शांति प्राप्त करने का प्रेरण मनुष्यों के हृदय में स्वाभाविक ही हैं ।प्राचीन काल में ऋषयों ने इसी प्रेरण से प्रेरित होकर इसकी पूरी खोज की और इसकी प्राप्ति के विचारों को उपनिषदों में वर्णन किया, इन्हीं विचारों से मिलते हुए विचारों को कबीर साहब और गुरु नानक साहब आदि संतों ने भी भारती और पंजाबी आदि भाषाओं में सर्वसाधारण के उपकरार्थ वर्णन किया।
इन विचारों को ही संतमत कहते हैं ।
परंतु संतमत की मूल भित्ति तो उपनिषद के वाक्यों को ही मनाने पड़ते हैं।
क्योंकि जिस ऊंचे ज्ञान का तथा उस ज्ञान के पद तक पहुँचाने के जिस विशेष साधन ,नादानुसन्धान अर्थात
सूरत शब्द योग का गौरव संतमत को हैं वे तो अति प्राचीन काल की इसी भित्ति पर अंकित होकर जगमगा रहे हैं। भिन्न भिन्न काल तथा देशों में संतों के प्रकट होने के कारण तथा इनके भिन्न भिन्न नामों पर इनके अनुयायियों द्वारा संतमत के भिन्न भिन्न नामकरण होने के कारण संतों के मत में पृथक्त्व ज्ञात होता हैं; परंतु यदि मोटी और बाहरी बातों को तथा पंथाई भावों को हटाकर विचारा जाय और संतों के मूल एवं सार विचारों को ग्रहण किया जाय तो यही सिद्ध होगा कि सब संतों का एक ही मत हैं!

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