नंदकुमार जसोदानंदन , हिलमिल प्रीत न छूटौ।
मोहजनित मल लाग विविध विधि, कोटिहु जतन न जाई।
जनम जनम अभ्यास निरत चित, अधिक अधिक लपटाई।
नयन मलिन परनारि निरिखि, मन मलिन विषय संग लागे।
हृदय मलिन वासना मान मद, जीव सहज सुख त्यागे।
परनिंदा सुनि श्रवण मलिन भे, बचन दोष पर गाये।
सब प्रकार मलभार लाग, निज नाथ चरण बिसराये।
तुलसीदास व्रतदान , ज्ञान तप, शुद्धि हेतु श्रुति गावै।
राम चरण अनुराग नीर बिनू, मल अति नाश न पावै।
शोभा शील ज्ञान गुण मंदिर, सुंदर परम उदरहि।
रंजन संत अखिल अघ गंजन, भंजन विषय विकरहि।
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