Sunday, 2 December 2018

सदगुरु महर्षि मेंही परमहंस



महायंत्री महातंत्री महामंत्र महायतिः ।
महामेंही महास्नेही महागेह महाधुतिः।।

शरीर और संसार से महानतम यंत्र चलाने वाले , सबके ऊपर आदेश पारित करने वाले जिनके आदेश को सब मानते हों ।
जिनका नाम ही सुपावन महामंत्र के समान फलदायी हो, अथवा जिन के पावन नाम का मनन करने से भक्तों का महात्रणा हो जाये।
महान त्यागी बहुत बड़े सन्यासी यतीन्द्र कुलतिलक ,बहुत सूक्ष्म बहुत महीन, बहुत बारीक शिष्यों से बहुत प्रेम करने वाले बहुत अच्छा घर, भक्तों का परम आश्रय स्थान, जिन के अंदर सच्चरित्रता की अत्यधिक चमक हो , कांतिमान।


आदि नाम पारस अहै, मन हैं मैंला लोह।
परसत ही कंजन भया , छूटा बंधन मोह।।
सबद खोजी मन बस करै, सहज जोग हैं येही।
सत्त शब्द निज सार हैं, यह तो झूठी देहिं।।
शब्द शब्द बहु अंतरा, शब्द शब्द का सीर।
शब्द शब्द को खोजना, शब्द शब्द का पीर।।

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