Monday, 17 December 2018

गहना कर्मणो गतिः अलौकिक जागरण !


गहना कर्मणो गतिः 
   स्वामी व्यसानन्द जी महाराज 



एक साँप बिल में अथवा वन में रहता हैं, और दूसरा साँप सपेडे की पिटारी में कैद रहता हैं। दोनों की आदत एक जैसी ही हैं, परंतु स्वतंत्र सर्प जितना खतरनाक होता हैं, अथवा खतरा पैदा कर सकता हैं उतना सपेडे का साँप घातक नहीं होता हैं, परंतु स्वतंत्र साँप किसी पर भी हमला कर सकता हैं।
इसी प्रकार सबका मन हैं वह संतों के पास जितना संयत रहता हैं, उतना आम लोगो के पास नहीं रहता हैं, क्योंकि आम लोगों के पास निर्ग्रहीत मन होता हैं, और सांसारि के पास स्वछंद मन होता हैं, संतों के पास ब्रह्माण्डी मन होता हैं और सांसारी के पास पिण्डी मन होता हैं , संतों के पास शून्य गत मन होता हैं, और सांसारी के पास पाप रहित मन होता हैं।
किसी को बांधने, पकड़ने, और खोलने के लिए
सामर्थ्य, सदयुक्ति, और स्वतंत्रता की आवश्यकता होती हैं,
परंतु ये तीनों विशेषताएं एक ही व्यक्ति में नहीं हो सकती।
किसी में सामर्थ्य हैं तो सदयुक्ति नहीं, किसी में सदयुक्ति हैं तो सामर्थ्य नहीं।

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