Friday, 8 December 2017

सद्गुरु महर्षि मेंही sadgurudev Maharshi Menhi

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Welcome 
श्री सद्गुरुवे नमः 

                    
सदगुरु महर्षि मेंही बाबा
दुःख दर्द भव के सब मिटैं सदगुरु चरण नित सेइये ।
गुरु भक्ति बिन कछु ना बने मेंहीं सकल संतन कही।



जय हो बाबा व्यसानन्द जी
अमर गुणों की खान हो आप , विनम्रता की शान हो आप ।भाग्य मेरी हुई कि आपके शरण मिले ,कहते हैं पहले संत हुये दुनियाँ में फिर मिली भक्ति की सीढ़ी, फिर मिला हैं जीवन प्रकाश।


व्यसानन्द जी महाराज महर्षि मेंही ज्ञान वाटिका में भ्रमण करते यह दशहरा 2018 की क्षण हैं।


                     
   
आरती अस्तुति से पूरे परिदृश्य को भक्तिमय करते महर्षि बाबा (व्यसानन्द जी बाबा के सेवक)

ईशादि स्तुति, नाम संकीर्तन, संतमत सिद्धान्त एवं परिभाषा,गुरु विनती साप्ताहिक गुरु कीर्तन, गुरु चालीसा तथा आरती सहित।
त्वदीयं वास्तु गुरदेव तुभ्यमेव समर्पये : व्यसानन्द

प्रातः कालीन स्तुति।। 👍👍💐💐☺

सब क्षेत्र क्षर अपरा परा पर,
औरु अक्षर पार में ।
निर्गुण सगुण के पार में
सत असत हूं के पार में ।
सब नाम रूप के पार में
मन बुद्धि वच के पार में ।
गो गुण विषय पंच पार में
गति भांति के हूं पार में ।
सूरत निरत के पार में
सब द्वंद द्वैतन्ह पार में ।
आहत अनाहत पार में
सारे प्रपंचन्ह पार में ।
सापेक्षता के पार में
त्रिपुटी कुटी के पार में ।
सब कर्म काल के पार में
सारे जंजालन्ह पार में ।
अद्वय अनामय अमल अति
आधेयता गुण पार में।
सत्ता स्वरूप अपार सर्वाधार,
मैं तू पार में ।
पुनि ॐ सोहम पार में,
अरु सचिदानंद पार में ।
हैं अनंत व्यापक पार में
हैं हिरण्य गर्भहु खर्व जासों,
जो हैं सांतन्ह पार में।
सर्वेश हैं अखिलेश हैं,
विश्वेश हैं सब पार में।
सतशब्द धरकर चल मिलन,
आवरण सारे पार में ।
सद्गुरु करुण कर तर ठहर,
धर मेंही जावे पार में ।

।।प्रातः सांयकालीन संत स्तुति ।।
सब संतन्ह की बड़ी बलिहारी ।
उनकी स्तुति केहि विधि कीजै,
मोरी मति अति नीच अनाड़ी।
दुःख भंजन भव फंदन गंजन ,
ज्ञान ध्यान निधि जग उपकारी।
विंदु ध्यान विधि नाद ध्यान विधि,
सरल सरल जग में परचारी।
धनि ऋषि संतन्ह धन्य बुद्ध जी,
शंकर रामानन्द धन्य अघारी।
धन्य हैं साहब संत कबीर जी,
धनी नानक गुरु महिमा भारी।
गोस्वामी श्री तुलसी दास जी,
तुलसी साहेब अति उपकारी।
दादू सुंदर सुर स्वपच रवि,
जगजीवन पलटू भयहारी।
सतगुरु देवी अरु जे भये हैं,
होंगे सब चरणन शिरधारी।
भजत हैं मेंही धन्य धन्य कही,
गहि संत पद आशा सारी ।
मंगल मूरति सद्गुरु, मिलवै सर्वाधार।
मंगलमय मंगल करण, विंवैं बारम्बार ।
ज्ञान उदधि अरु ज्ञान घन सद्गुरु शंकर रूप।
नमो नमो बहु बारहिं, सकल सुपूज्यं भूप।
सकल भूल नाशक प्रभु, सद्गुरु परं कृपाल।
नमो कंज पद युग पकड़ी सुनु प्रभु नज़र निहाल।
दया दृष्टि करि नाशिये, मेरो भूल अरु चूक।
खारो तीक्ष्ण बुधि मोरि ना पाणी जोड़ी कहु कुक।
नमो गुरु सतगुरु नमो, नमो नमो गुरुदेव।
नमो विघ्न हरता गुरु, निर्मल जाको भेव।
ब्रह्म रूप सद्गुरु नमो प्रभु सर्वेश्वर रूप ।
राम दिवाकर रूप गुरु नाशक भ्रम तप जाल।
नमो नमो सतगुरु नमो, जा सम कोउ न आन।
परम पुरुषहू ते अधिक, गावें संत सुजान।

जय जय परम प्रचंड, तेज तम मोह विनाशन।
जय जय तारण तरण, करन जन शुद्ध बुद्ध सन।

जो परम तत्व आदि अंत रहित, असीम अजन्मा, अगोचर, सर्वव्यापक और सर्वव्यापकता के भी परे हैं, उसे ही सर्वेश्वर सर्वाधार मनना चाहिये।
तथा अपरा और परा दोनो प्रकृतियों के पार में अगुण और सगुण पर अनादि अनंत स्वरूपी अपरम्पार शक्तियुक्त देशकालतीत शब्दातीत नामरूपतित अद्वितीय मन बुद्धि और इन्द्रियों के परे जिस परम सत्ता पर यह सारा प्रकृति मंडल एक महान यंत्र की नाई परिचालित होता रहता हैं, जो ना व्यक्ति हैं और ना व्यक्त हैं , जो मायिक विस्तृतत्व विहीन हैं, जो अपने से बाहर कुछ भी अवकाश नहीं रखता हैं, जो परम सनातन परम पुरातन एवम सर्वप्रथम से विधमान हैं, संतमत में उसे ही परम अध्यात्म पद वा परम आध्यात्मस्वरूपी परम प्रभु सर्वेश्वर मानते हैं।
जीवात्म सर्वेश्वर का अभिन्न अंग हैं ,
प्रकृति आदि अंत सहित हैं और सृजित हैं।
मयबद्ध जीव आवागमन के चक्र में पड़ा रहता हैं, इस प्रकार रहना जीव के सब दुखो का कारण हैं, इससे छुटकारा पाने के लिए सर्वेश्वर की भक्ति ही एकमात्र उपाय हैं,
मानस जप मानस ध्यान दृष्टि साधना और सूरत शब्द योग द्वारा सर्वेश्वर की भक्ति करके अंधकार, प्रकाश, और शब्द के प्राकृतिक तीनों परदों से पार जाना और सर्वेश्वर से एकता का ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष पा लेने का मनुष्य मात्र अधिकारी हैं।
झूट बोलना , नशा खाना, व्यभिचार करना, हिंसा करनी अर्थात जीवों को दुःख देना वा मतस्य मांस को खाद्य पदार्थ समझना और चोरी करनी इन पांचों महापापो से मनुष्य को अलग रहनी चाहिए।
एक सर्वेश्वर पर ही अचल विश्वाश पूर्ण भरोषा तथा अपने अंदर में ही उनकी प्राप्ति का दृढ़ निश्चय रखना, सद्गुरु की निष्कपट सेवा ,सत्संग और दृढ़ ध्यानाभ्यास ,इन पांचों को मोक्ष का कारण समझना चाहिए।

बून्द समानी समुद्र में यह जाने सब कोई
समुद्र समाना बून्द में जाने विरला कोई।


शांति स्थिरता वा निश्चलता को कहते हैं,
शांति को जो प्राप्त कर लेते हैं संत कहलाते हैं,
संतों के मत वा धर्म को संतमत कहते हैं।
शांति प्राप्त करने का प्रेरण मनुष्यों के हृदय में स्वाभाविक ही हैं ।प्राचीन काल में ऋषयों ने इसी प्रेरण से प्रेरित होकर इसकी पूरी खोज की और इसकी प्राप्ति के विचारों को उपनिषदों में वर्णन किया, इन्हीं विचारों से मिलते हुए विचारों को कबीर साहब और गुरु नानक साहब आदि संतों ने भी भारती और पंजाबी आदि भाषाओं में सर्वसाधारण के उपकरार्थ वर्णन किया।
इन विचारों को ही संतमत कहते हैं ।
परंतु संतमत की मूल भित्ति तो उपनिषद के वाक्यों को ही मनाने पड़ते हैं।
क्योंकि जिस ऊंचे ज्ञान का तथा उस ज्ञान के पद तक पहुँचाने के जिस विशेष साधन ,नादानुसन्धान अर्थात
सूरत शब्द योग का गौरव संतमत को हैं वे तो अति प्राचीन काल की इसी भित्ति पर अंकित होकर जगमगा रहे हैं।






बंगलोर की भव्य आश्रम
































Thursday, 7 December 2017

महर्षि मेंही मठ बेंगलुरु कर्नाटक 8105416938


महर्षि मेंही मठ
दोभरहल्ली , लक्ष्मीपुरा रोड j d अग्रवाल फार्म के निकट
बंगलुरु कर्नाटक पिन मोबाइल : 8105416938



श्री सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज "
 भारत के बिहार राज्य स्थित "कुपाघाट " और "मझुआ टोला" को आज दुनिया जान रही

संतमत न सिर्फ किसी एक धर्म को बढ़ावा देता हैं यह इस पृथ्वी ग्रह के सभी अपने उन बेटों की याद दिलाती जिसने अपने जीवन में इंसानों के प्रति , जीवों के प्रति सबसे अच्छी विचारधारा प्रदान किये , 

इस ब्रह्माण्ड में कई ऐसे ग्रह हैं , उन सभी में अभी तक पृथ्वी ही ऐसा ग्रह हैं जहां इंसान निवाश करते जिसको विज्ञान भी मान रही हैं , इस पृथ्वी पर जन्मे सुपात्र सुपुत्रों की व्याख्या ही संतमत हैं "

सबसे पहले संतमत के एक आश्रम  को देखते हैं !



'श्री सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज "

बंगलौर मठ भारत 

जयगुरु जयगुरु जयगुरु जयगुरु जयगुरु जयगुरु "






महर्षि मेंही मठ बंगलुरु कर्नाटक प्रवेश द्वार।
भव्य वातावरण के साथ आनंद रूपी भक्तिमय दृश्य।